सिफा ने किसानों के जीवनस्तर को बेहतर बनाने और देश की अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए कुछ महत्वपूर्ण सुझावों के साथ सरकार से की अपील


सिफा ने सिगरेट पर कनपशेसन सेस को घटाकर जीएसटी लागू होने से पहले के स्तर पर लाने की अपील की


 नई दिल्ली : देशभर के किसानों की तरफ से नीति निर्माण की प्रक्रिया में प्रभावी हस्तक्षेप रखने वाले और भारत में पेशेवर किसानों के सर्वोच्च संगठन भारतीय किसान संघ परिसंघ (सिफा) ने बजटपूर्व चर्चा में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से मुलाकात कर भारतीय किसानों की कुद अहम चिंताओं और मांगों को उनके समक्ष रखा है। परिचालन एवं नीतिगत दोनों ही स्तर पर किसानों की स्थिति में सुधार के लिए गंभीरता से कदम उठाना भारत सरकार के दोहरे लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए जरूरी है। सरकार ने 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने और 2025 तक भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य रखा है। इन लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में यह जरूरी है कि सरकार एक लंबी अवधि की स्थायी कृषि एवं ग्रामीण नीति बनाए और उसे लागू करे और सुनिश्चित करे कि देश के ग्रामीण हिस्सों में रहने वाली आबादी को भी शहरी आबादी की तरह ही समान अवसर मिले।


आज की तारीख में कृषि एकमात्र ऐसा क्षेत्र है, जहां नेट नेगेटिव आरओआई है, क्योंकि महंगाई को नियंत्रित रखने की प्राथमिकता के कारण किसानों को उनके उत्पाद की कम कीमत मिल पाती है। इससे कृषि आधारित संपत्ति का निर्माण नहीं हो पाता है और किसानों की निवेश करने, विस्तार करने एवं कृषि से जुड़े तरीकों को सुधारने की क्षमता नहीं बन पाती हैइस चुनौतीपूर्ण स्थिति को समझने के लिए तंबाकू किसान सटीक उदाहरण हैं, जो देश में सिगरेट पर भेदभावपूर्ण कराधान नीति के कारण गंभीर रूप से आर्थिक संकट का शिकार हैं। इसके अतिरिक्त किसानों के लिए सबसे महत्वपूर्ण कारक माने जाने वाले 'पानी' के बारे में भी नीति निर्माताओं की जिम्मेदारी है कि पानी के प्रयोग की दक्षता बढ़ाएं, सिंचाई के लिए नहर पर निर्भर रहने वाले क्षेत्रों में ज्यादा पानी वाली फसलों को कम करने के लिए कम पानी में होने वाली फसलोंके उत्पादन को प्रोत्साहित करें। इसी तरह घरेलू मांग को पूरा करने और कृषि सेक्टर को लगातार टिकाऊ बनाए रखने के लिए बारिश वाली जगहों पर लाइव इरिगेशन की सुविधा मुहैया कराए, जिससे उत्पादन बढ़ाना संभव हो सके।


सिफा के महासचिव बोजा दसरथ रेड्डी के मुताबिक, 'ग्रामीण अर्थव्यवस्था को संकट से निकालने के लिए मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत है। हमें कृषि उत्पादकता बढ़ाने, भूमि की उर्वरता बढ़ाने, प्रभावी फसल बीमा मुहैया कराने, टिकाऊ आयात-निर्यात नीति लागू करने, कृषि उत्पादों की कीमत सही स्तर पर बनाए रखने के लिए बाजार में सक्रिय हस्तक्षेप करने, संपूर्ण मैकेनाइजेशन करने, टेक्नोलॉजी को बढ़ावा देने, पशुपालन, पॉल्ट्री व संबंधित गतिविधियों को प्रोत्साहित करने की जरूरत है।


श्री रेड्डी ने आगे कहा, 'कृषि उद्योग कॉम्प्लेक्स पर ध्यान देने की मौजूदा नीति में जब तक छोटे और मझोले किसानों को ध्यान में रखकर नीतियां नहीं बनेंगी, तब तक केवल अमीरों को लाभ होगा, जबकि छोटे और सीमांत किसान पीछे छूट जाएंगेअगर एकीकरण और आधुनिकीकरण की ऐसी नीति जारी रही जो छोटे एवं मझोले किसानों को पीछे छोड़ देती है, तो इससे केवल आय की असमानता बढ़ेगी और देश में सामाजिक अस्थिरता को हवा मिलेगी।


भारतीय अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा पेचीदा तरीके से यहां की ग्रामीण बेहतरी से जुड़ा है। किसानों की आय की स्थिति को तत्काल कुछ कदम उठाकर सुधारा जा सकता है। पहली जरूरत है कि सरकार ऐसी जगहों पर सिंचाई की व्यवस्था कराए, जहां अभी सुविधा नहीं है, लेकिन प्राथमिकता पर इसकी जरूरत है। वर्तमान में, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई) के तहत प्राथमिकता वाली 23 एआईबीपी (एक्सलरेटेड इरिगेशन बेनिफिट प्रोग्राम) परियोजनाएं ऐसी हैं, जो देश में सिंचाई की समस्या से सर्वाधिक जूझ रहे जिलों को छोड़ देती हैं। किसानों की आय बढ़ाने के लिए पीएमकेएसवाई में सिंचाई से वंचित भारत की आधी उत्पादन के योग्य भूमि पर केंद्रित होना चाहिए। इसके लिए वाटर डिस्प्यूट ट्रिब्युनल बनाना, लंबी अवधि के सिंचाई फंड गठित करना जिससे बारिश वाले क्षेत्रों में सिंचाई की बेहतर व्यवस्था हो और देश में बाढ़ एवं सूखाग्रस्त क्षेत्रों में सिंचाई की समस्या के समाधान के लिए नदियां जोड़ने जैसी योजनाओं को पूरा करना चाहिए


तंबाकू किसान सरकार से सिगरेट पर कंपनसेशन सेस को घटाकर जीएसटी लागू होने से पहले के स्तर पर लाने की मांग कर रहे हैं। ऐसा कदम किसानों के लिए फायदेमंद होगा, क्योंकि इससे अवैध कारोबार कम होगा और घरेलू तंबाकू की मांग फिर पहले के स्तर पर पहुंच जाएगी, जिससे तंबाकू की कीमतों में स्थिरता आएगी और किसानों की आय बढ़ेगी। तस्करी कर लाए हुए सिगरेट में घरेलू तंबाकू का प्रयोग नहीं होता है और इस कारण से सिगरेट के वैध कारोबार के लिए तंबाकू की मांग में बहुत कमी आई है। इससे 2013-14 से अब तक एफसीवी (फ्लू क्योर्ड वर्जीनिया) तंबाकू किसानों की आय में 5,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की कमी आई है


सिफा ने मांग की है कि स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिश के अनुरूप एमएसपी का निर्धारण लागत (वास्तविक लागत+पारिवारिक श्रम+भूमि के लीज की लागत) और उस पर 50 प्रतिशत लाभ के हिसाब से हो। उत्पादकता बढ़ने के बावजूद जीडीपी में कृषि को योगदान स्थिर बना हुआ, क्योंकि कृषि उत्पादों की कीमत या तो स्थिर है या कम हुई है। इसलिए एमएसपी के निर्धारण में महंगाई का भी ध्यान रखा जाना चाहिए। किसान संगठनों के पर्याप्त प्रतिनिधियों के साथ कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) को स्वायत्त वैधानिक आयोग बनाया जाना चाहिए।


पैसे की कमी किसानों के लिए सबसे बड़ी समस्या है, जिसके कारण उन्हें साहूकारों के आगे मजबूर होना पड़ता है। केंद्र एवं राज्य सरकारों की ओर से विभिन्न पहल के बावजूद किसानों व काश्तकारों को समय पर क्रेडिट नहीं मिल पाता है। कृषि क्रेडिट के साथ-साथ ऐसे संस्थानों को भी पर्याप्त महत्व दिया जाना चाहिए जो किसानों को क्रेडिट मुहैया कराते हैं। इसी तरह हर फसल मौसम में काश्तकारों से जुड़े आंकड़ों को प्रभावी एवं पारदर्शी तरीके से दर्ज करने की व्यवस्था करनी चाहिए ताकि काश्तकारों को लोन एवं सब्सिडी के लिए बेहतर डाटा उपलब्ध हो सके।


पीएमएफबीवाई को सही तरह से लागू करने के लिए भारत सरकार को प्रभावी एवं समतावादी व्यवस्था बनानी चाहिए ताकि किसान पीएमएफबीवाई में आसानी से नाम जुड़वा सकें। साथ ही फसल को होने वाले नुकसान के वैज्ञानिक तरीके से आकलन के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाने और फसल को हुए नुकसान की समय से भरपाई होने से पीएमएफबीवाई के प्रति किसानों का भरोसा बढ़ेगा।


सिफा के मुताबिक, जमीनी स्तर पर किसानों के कल्याण के लिए पंचायती राज व्यवस्था को मजबूत करने वाले कानून लागू किए जाने चाहिए। आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा गांव सचिवालय योजना इस दिशा में उठाया गया सही कदम है, क्योंकि गांव के स्तर पर सेवा मुहैया कराने का प्रावधान है और इससे जवाबदेही बढ़ेगी। यह पहल प्रभावी तरीके से कृषि से जुड़े सभी मसलों जैसे मिट्टी की सेहत, फसल लोन की उपलब्धता और कृषि उत्पादों की मार्केटिंग आदि को हल करने में मदद करेगी। इसके अलावा फसल बीमा से जुड़े कई मसलों जैसे प्रीमियम का भुगतान, नुकसान का आकलन और क्लेम के जल्द निस्तारण आदि में भी मदद मिलेगी। इस मॉडल के विश्लेषण के बाद योजना को अन्य राज्यों में भी लागू किया जा सकता है।


सरकार को फार्मर प्रोड्यूसर कंपिनयों की पहल के लिए भी बधाई दी जानी चाहिए क्योंकि इनसे फसलों के वैल्यू एडिशन और सही कीमत पर फसलों की मार्केटिंग में भी मदद मिलेगी। फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी की अवधारणा को बढ़ाने के लिए भारत सरकार आयकर की धारा 80पी के तहत छूट देने और कृषि आय को व्यापक तरीके से परिभाषित करने की संभावनाओं जैसे कदम उठा सकती है, जिससे लिमिटेड रिटर्न और पैट्रोनेज बोनस को इसमें शामिल किया जा सके।


पराली जलाना पर्यावरण के लिए गंभीर समस्या बनकर सामने आई है। इसी के साथ बारिश वाले क्षेत्रों में जानवरों के लिए चारे की कमी भी बड़ी समस्या है। इन समस्याओं को हल करने के लिए भारत सरकार पराली वाले चारे को खरीदकर 'चारा बैंक बनाने जैसी पहल कर सकती है। साथ ही ग्रामीण वेयर हाउस पिछले पांच साल में गैर उत्पादक साबित हुए हैंक्योंकि स्टोरेज के दो साल बाद भी किसान एमएसपी पाने में अक्षम हैं और उन्हें बैंक लोन व वेयरहाउसिंग चार्ज चुकाने पड़ रहे हैं।


सिफा ने इस तथ्य को भी सामने रखा है कि बिना सरप्लस पैदावार का अनुमान लगाए 66 लाख टन दालों के आयात को अनुमति देने से देशभर के किसानों को एमएसपी से कम दाम पर दालें बेचने के लिए मजबूर होना पड़ा। किसान समुदाय किसानों, काश्तकारों और कृषि मजदूरों के लिए एक आय सुरक्षा कानून की भी मांग करता है। कंसोर्टियम का मानना है कि एसेंशियल कमोडिटीज एक्ट में स्टॉक लिमिट के प्रावधान के कारण कृषि उत्पादों की मांग और कीमत पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। इसलिए स्टॉक पर लगी हर तरह की सीमा और कृषि उत्पादों को लेकर अन्य प्रतिबंधों को हटाए जाने की जरूरत है। इसके अलावा सिफा ने सरकार से ग्रामीणों के कल्याण एवं किसानों की आय को प्रोत्साहित करने के लिए तत्काल कुछ अतिरिक्त कदम उठाने की मांग की है। इनमें खेती से जुड़ी सभी वस्तुओं एवं उपकरणों पर जीएसटी की दर को शून्य करना, कृषि क्षेत्र में निवेश को कई गुना तक बढ़ाना और चावल निर्यात पर प्रोत्साहन जारी रखने जैसे कदम शामिल हैं


कृषि उत्पादों के वैल्यू एडेड प्रोडक्ट की मांग बढ़ाने की दिशा में प्रोसेस्ड या सामान्य हर तरह की खाद्य सामग्री पर भी जीएसटी की दर शून्य होनी चाहिए, जिससे ज्यादा कृषि उत्पादों की प्रोसेसिंग हो सके और कृषि क्षेत्र में कचरा कम हो, जिससे किसानों की आय बढ़ेगी।


स्थानीय स्तर पर उगाई जाने वाली तंबाकू की मांग बढ़ाने और किसानों की आय बढ़ाने के लिए मर्चेडाइज्ड एक्सपोर्ट्स फ्रॉम इंडिया स्कीम (एमईआईएस) के तहत तंबाकू निर्यात को प्रोत्साहित किए जाने की महत्वपूर्ण भी सिफा ने रखी है। यह इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि देश के तंबाकू किसान लगातार आय में गिरावट का सामना कर रहे हैं, क्योंकि घरेलू स्तर पर सिगरेट उद्योग में तंबाकू की मांग कम हुई है।


अंत में यह मांग भी रखी गई है कि राज्य को एक्वा, डेयरी, तंबाकू और कॉफी सेक्टर से जुड़े किसानों को भी सहयोग देना चाहिए। यह इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि सरकार के 'मेक इन इंडिया' पहल के बाद इन किसानों को दनियाभर की कंपनियों से प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार रहना होगा और सरकारी एजेंसियों को यह काम युद्धस्तर पर करना चाहिए। आखिर में कंसोर्टियम ने स्थानीय स्तर पर कमोडिटी ग्रुप बनाने की मांग भी की है, जिन्हें राष्ट्रीय स्तर पर एकीकृत किया जाना चाहिए जिससे हॉर्टिकल्चर (बागवानी) वाली फसलों को बढ़ावा दिया जा सके। ये कमोडिटी ग्रुप कृषि एवं प्रसंस्करित खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण से संपर्क कर विदेशी बाजारों में इन फसलों को प्रोत्साहित करने की दिशा में काम करेंगे।