वित्त मंत्री के निर्देशों के समर्थन में प्रहार ने कोविड के कारण संकटग्रस्त खनिज राज्यों में लोगों के 'जीवन व आजीविका' की रक्षा के लिए डीएमएफ फंड के इस्तेमाल को गति देने की अपील की

                   


वित्त मंत्री के निर्देशों के समर्थन में प्रहार ने कोविड के कारण संकटग्रस्त खनिज राज्यों में लोगों के 'जीवन व आजीविका' की रक्षा के लिए डीएमएफ फंड के इस्तेमाल को गति देने की अपील की


नई दिल्ली : बेसहारा लोगों की समस्याओं के समाधान की दिशा में कार्यरत दिल्ली स्थित एनजीओ प्रहार (पब्लिक रेस्पॉन्स अगेंस्ट हेल्पलेसनेस एंड एक्शन फॉर रिड्रेसल) ने आज सरकार से डीएमएफ (डिस्ट्रिक्ट मिनरल फाउंडेशन) फंड का सक्रियता से प्रयोग करने और विभिन्न राज्यों में कोविड प्रभावित समुदायों के जीवन व आजीविका की रक्षा के लिए राहत के प्रयासों को गति देने की अपील की है। यह सब कोविड-19 संकट के कारण उपजे हालात में एनजीओ के 'नेशनल मूवमेंट फॉर लाइवलीहुड रीसरेक्शन एंड सेल्फ एंप्लॉयमेंट' का ही हिस्सा है। 


खनन मंत्रालय की वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक 31 जनवरी, 2020 तक डीएमएफ फंड में कुल 35,925 करोड़ रुपये जमा हुए थे, जिनमें से केवल 35 प्रतिशत या 12,414 करोड़ रुपये ही अब तक खर्च हुए हैं, जिससे 23,510 करोड़ रुपये का फंड बचा हुआ है।


26 मार्च, 2020 को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपनी एक घोषणा के दौरान महामारी के कारण उपजे हालात में राज्य सरकारों को डीएमएफ फंड का प्रयोग स्वास्थ्य सेवाओं, स्क्रीनिंग एवं टेस्टिंग जरूरतों और अन्य आवश्यकताओं के लिए डीएमएफ फंड के इस्तेमाल की अपील की थी। हालांकि तीन हफ्ते बाद भी इस दिशा में नगण्य प्रगति हुई है और बहुत थोड़े जिलों ने ही इस फंड का प्रयोग किया है। कोविड संकट के कारण उपजी परिस्थिति में लोगों की जीवन रक्षा और आजीविका की हिफाजत के लिए फंड के इस्तेमाल को लेकर कोई स्पष्टता नहीं होने के कारण ऐसा हो रहा है।


गोवा जैसे कुछ मिनरल राज्य पहले से ही न्यायिक हस्तक्षेप के कारण आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं, यहां सुप्रीम कोर्ट के आदेश के चलते मार्च, 2018 से यहां खनन गतिविधियां रुकी हुई हैं। इससे राज्य की आबादी की 30 फीसद आजीविका छिन गई है और खनन पर निर्भर 3 लाख लोग संकट में आ गए हैं। हाल में कोविड-19 महामारी ने यहां का पर्यटन कारोबार भी बरबाद कर दिया है। गोवा में केवल दो ही उद्योग हैं – पर्यटन और खनन। पर्यटन उद्योग को अगले 9 से 12 महीने किसी सुधार की उम्मीद नहीं है और खनन उद्योग भी ठहरा हुआ है। इससे आगे चलकर राज्य में कानून एवं व्यवस्था का संकट भी पैदा होने का संकट है। 


गोवा में जब खनन गतिविधियां चल रही थीं, उस समय मार्च, 2018 तक यहां डीएमएफ फंड में 188.65 करोड़ रुपये और गोवा आयरन ओर परमानेंट फंड में 399 करोड़ रुपये जमा किए थे। इसमें से डीएमएफ फंड से केवल 2 प्रतिशत या 4 करोड़ रुपये ही अब तक लोगों के कल्याण में प्रयोग किए गए हैं। ऐसे समय में जबकि राज्य सबसे बुरे संकट के दौर से गुजर रहा है, तब इस फंड का इस्तेमाल बेलआउट पैकेज के रूप में किया जा सकता है। वित्त मंत्रालय की घोषणा और इसके बाद राज्य अधिकारियों की ओर से इस फंड के इस्तेमाल में उन्हें गैर जिम्मेदार विपक्ष का सामना करना पड़ रहा है। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, गोवा में एक बड़े एनजीओ ने इन फंडों के इस्तेमाल के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में स्टे याचिका देने की धमकी दी है। उसका कहना है कि ऐसा करना खनिज कानून के खिलाफ है और अवैध है। सिर्फ कानून के नाम पर हो रहे इस तरह के विरोध के पीछे लोगों के छिपे हितों की जांच होनी चाहिए। ऐसा विरोध कानून की मूल भावना यानी लोगों के कल्याण पर आधारित नहीं है।


इस विषय पर प्रहार के राष्ट्रीय संयोजक एवं प्रेसिडेंट श्री अभय राज मिश्रा ने कहा, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मंत्र ‘जान भी, जहान भी' यानी जीवन और आजीविका दोनों के तहत यह जरूरी है कि संकट के मौजूदा दौर में समाज के सबसे निचले स्तर पर रह रहे लोगों के आर्थिक हितों एवं लोगों के जीवन की रक्षा के लिए हरसंभव प्रयास बहुत जरूरी है। हमें इस समय सभी संभव संसाधनों का प्रयोग सुनिश्चित करना चाहिए। इसमें डीएमएफ फंड का बचा हुआ फंड भी शामिल है। साथ ही जहां भी अनुमति हो, वहां आर्थिक गतिविधि के पहिए संचालित किए जाने चाहिए। जो राष्ट्र इस महामारी के दौर में सबसे कम नुकसान के साथ उबर जाएंगे, वे महामारी के बाद ही दुनिया में सबसे मजबूत होकर उभरेंगे। भारत इस समय काफी मजबूत स्थिति में है और हम ऐसी गलती नहीं कर सकते हैं, जिससे यह महामारी हमारे लोगों पर हावी हो जाए।"


उन्होंने आगे कहा, "शनिवार को 2154 नए मामलों के साथ देश में कोविड-19 के सबसे ज्यादा मामले आए। 26 दिन के लॉकडाउन और सभी सुरक्षात्मक कदमों के बाद भी यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि इस संकट का अंत कब होगा। अगर आज हमारे लोगों का जीवन संकट में आ गया तो फिर हम अपने संसाधनों को उस भविष्य के लिए बचाकर क्या करेंगे, जिसका अभी कुद पता नहीं।"


उन्होंने कहा, “निरर्थक लक्ष्य वाले कुछ संस्थानों के हृदयविहीन विरोध को ध्यान में रखना चाहिए और इनका असली मंतव्य सामने आना चाहिए। हमारे लोगों को इस समय बचे रहने की जरूरत है और आर्थव्यवस्था को भी राहत चाहिए, जिसके लिए सभी एक्जीक्यूटिव, विधायिका, न्यायपालिका और सिविल सोसायटी के सभी लोगों को एक साथ मिलकर काम करना चाहिए।"


खनिज कानून के मुताबिक, डीएमएफ फंड के 40 प्रतिशत का इस्तेमाल 'अन्य प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में किया जाना चाहिए, जबकि 60 प्रतिशत का प्रयोग 'प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में किया जाना चाहिएइसका अर्थ है कि फंड का 60 प्रतिशत हिस्सा सीधे खनन गतिविधियों से जुड़े लोगों के लिए किया जा सकता है। बाकी हिस्से का प्रयोग राज्य के हित में अन्य कार्यों के लिए किया जा सकता है।


डीएमएफ फंड में बचा हुआ पैसा बहुत ज्यादा है। खनिन वाले राज्यों में जनवरी, 2020 तक ओडिशा ने डीएमएफ में 9,502 करोड़ रुपये जुटाए हैं। झारखंड के पास 5,181 करोड़ रुपये और छत्तीसगढ़ 4,981 करोड़ रुपये जुटाए हैं। अन्य राज्यों में राजस्थान में इस फंड में 3,514 करोड़ रुपये, मध्य प्रदेश में 2,864 करोड़ रुपये, तेलंगाना में 2,774 करोड़ रुपये, कर्नाटक में 1,842 करोड़ रुपये, महाराष्ट्र में 1,728 करोड़ रुपये, आंध्र प्रदेश में 906 करोड़ रुपये, गुजरात में 668 करोड़ रुपये, उत्तर प्रदेश में 651 करोड़ रुपये, तमिलनाडु में 610 करोड़ रुपये और गोवा में 189 करोड़ रुपये जमा हैं। जहां तक इस फंड के इस्तेमाल की बात है, छत्तीसगढ़ ने जनवरी तक सबसे ज्यादा 3,359 करोड़ रुपये खर्च किए हैं, ओडिशा ने 2,794 करोड़ रुपये और झारखंड ने 2,409 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। यहां तक कि छोटे राज्यों जैसे असम ने 80 करोड़ रुपये, हिमाचल ने 143 करोड़ रुपये, मेघालय ने 48 करोड़ रुपये और पश्चिम बंगाल ने 43 करोड़ रुपये जुटाए हैं। डीएमएफ फंड के बारे में यहां से जानकारी ली जा सकती है :