चिकित्सकों और स्वास्थ्य पेशेवरों ने सरकार से बिना धुएं वाले और करमुक्त तंबाकू उत्पादों की बिक्री के लिए रेगुलेशन की अपील की

                                             


नॉन वर्जीनिया तंबाकू के विनिर्माण, वितरण एवं बिक्री पर नियमन से सरकार को 35,000 से 40,000 करोड़ रुपये तक का राजस्व मिल सकता है और युवाओं की सेहत की सुरक्षा भी होगी


नई दिल्ली : तंबाकू एवं अल्कोहल उत्पादों के खिलाफ जागरूकता की दिशा में कार्यरत चिकित्सकों एवं स्वास्थ्य व शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत पेशेवरों के साथ काम करने वाले स्वयं सहायता समूह श्रम ने स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ. हर्ष वर्धन और वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण से अपील की है कि भारत में नॉन वर्जीनिया तंबाकू के बढ़ते उपभोग को नियंत्रित करने एवं लोगों की सेहत की सुरक्षा के लिए इसके असंगठित विनिर्माण, वितरण और बिक्री को विनियमित किया जाए और इसे कराधान व्यवस्था के अंतर्गत लाया जाए।


भारत में अभी धुआंरहित तंबाकू का उपयोग ज्यादातर चबाने वाले तंबाकू, गुटखा, पान मसाला, जर्दा एवं ऐसे ही अन्य उत्पादों के असंगठित विनिर्माण में होता है। इन उत्पादों का बड़े पैमाने पर भारत के गरीब तबके के लोग उपभोग करते हैं, क्योंकि कोई विनियमन एवं कराधान नहीं होने के कारण ये उत्पाद आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं और सस्ते होते हैं। बीएमसी मेडिसिन में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक, बिना धुएं वाले तंबाकू चबाने के कारण दुनिया में होने वाली मौतों में से 70 प्रतिशत भारत में होती हैं। कोविड-19 के इस दौर में इनके उपभोग को कम करने के लिए विनियमन और भी जरूरी हो गया है, क्योंकि इस श्रेणी के ज्यादातर तंबाकू उत्पाद चबाए जाते हैं और फिर उन्हें इधर-उधर थूकने के कारण वायरस के प्रसार का भी खतरा बढ़ जाता है। विनियमन की जरूरत इसलिए भी ज्यादा है, क्योंकि अध्ययन के मुताबिक, भारत में बिना धुएं वाले तंबाकू उत्पादों का प्रयोग सबसे ज्यादा होता है


भारत में सिगरेट एवं सिगार में प्रयोग होने वाले तंबाकू पर प्रतिबंध लगाने व इसे विनियमित करने के लिए बहुत से नियम और कानून है, वहीं बिना धुएं वाले तंबाकू उत्पादों पर कोई नियम कानून नहीं लागू होता है, जबकि भारत के 15 राज्यों में उत्पादित होने वाले तंबाकू में 85 प्रतिशत हिस्सेदारी इसी तंबाकू की है। इस बड़े असंगठित एवं अनियमित सेक्टर के उपभोक्ताओं में सभी उम्र के लोग शामिल हैं। ग्लोबल एडल्ट टबैको सर्वे के मुताबिक, इसके उपभोक्ताओं की औसत आयु 17.4 साल है। इस सर्वे में यह भी पाया गया है कि भारत में तंबाकू प्रयोग करने वाले 30 प्रतिशत लोग धुआंरहित तंबाकू का इस्तेमाल करते हैं, फिर भी यह सेक्टर नियम एवं कानून से पूरी तरह बाहर है।


धुआंरहित तंबाकू सेक्टर के लिए ऐसी ही विनियमन व्यवस्था की जरूरत है, जैसी अन्य तंबाकू उत्पादों के लिए है। अगर धुआंरहित तंबाकू का कारोबार या प्रोसेस तंबाकू बोर्ड ऑफ इंडिया या एपीएमसी के तहत नीलामी के माध्यम से हो तो इससे इनकी सही कीमत और टैक्स का निर्धारण हो सकेगा। विनियमन से यह भी सुनिश्चित हो सकेगा कि इस बेहद असंगठित क्षेत्र में विनिर्माता कर चोरी नहीं कर पाएंगे।


धुआंरहित तंबाकू के कारोबार के लिए रेगुलेटरी फ्रेमवर्क बनाने की अपील करते हुए श्रम की डॉ. प्रणस्मिता कालिता ने कहा, 'भारत में धुआंरहित तंबाकू उद्योग व्यापक रूप से असंगठित है, जिसमें उत्पादक, विनिर्माता और वितरक इसके रेगुलेटरी या कराधान व्यवस्था से बाहर होने का लाभ उठाते हैं। इससे बड़े पैमाने पर श्रम नियमों का उल्लंघन एवं कर चोरी होती है। समय की जरूरत है कि सरकार इस संकट पर ध्यान दे और इसे विनियमित करने के लिए नीति एवं कानून बनाए और सुनिश्चित करे कि धुआंरहित तंबाकू व इसके उत्पादों पर वैध तरीके से टैक्स लगाया जाए। नॉन वर्जीनिया तंबाकू पर सही तरीके से कर लगाने से सरकार को 35,000 से 40,000 करोड़ रुपये तक का राजस्व मिल सकेगा।'


धुआंरहित तंबाकू के उत्पादन, विनिर्माण एवं बिक्री को नियंत्रित करने के लिए कदम उठाना इस समय बहुत जरूरी है, क्योंकि कोविड-19 के इस दौर में इस श्रेणी के तंबाकू से बने उत्पाद चबाए जाते हैं और इधर-उधर थूक दिया जाता है। एक बेहतर रेगुलेटरी नीति और उचित टैक्स होने से इसके उपभोग को भी नियंत्रित करने में मदद मिलेगी।