फेथ ने गैर प्रतिस्पर्धी ट्रैवल टैक्स टीसीएस को हटाने की मांग की

                       


फेथ ने गैर प्रतिस्पर्धी ट्रैवल टैक्स टीसीएस को हटाने की मांग की


नई दिल्ली : भारत में संपूर्ण टूरिज्म, ट्रैवल और हॉस्पिटेलिटी इंडस्ट्री का प्रतिनिधित्व करने वाले राष्ट्रीय एसोसिएशंस (ADTOI, ATOAI, FHRAI, HAI, IATO, ICPB, IHHA, ITTA, TAAI, TAFI) के पॉलिसी फेडरेशन के रूप में काम करने वाले फेडरेशन ऑफ एसोसिएशंस इन इंडियन टूरिज्म एंड हॉस्पिटेलिटी (फेथ) ने और उसके सहयोगी एआईआरडीए ने आउटबाउंड ट्रैवल के लिए वित्त विधेयक 2020 में 1 अक्टूबर से प्रस्तावित टीसीएस को हटाने का अनुरोध किया है। इस टैक्स को पहली अप्रैल से लागू किया जाना था, जिसे उद्योग जगत के अनुरोध पर टाल दिया गया था। हालांकि इसे खत्म नहीं किया गया था और 1 अक्टूबर से यह फिर लागू होने जा रहा है


टीसीएस एक बेहद गैर प्रतिस्पर्धी कदम है और इस प्रस्ताव के लागू होने से भारत ट्रैवल एजेंट एवं टूर ऑपरेटर्स पर अप्रत्याशित रूप से नकारात्मक असर पड़ेगा


भारत में अभी अनलॉक 4 प्रभावी है और ट्रैवल कॉरिडोर अब धीरे-धीरे खुल रहे हैं। भारतीय ट्रैवल एजेंट एवं टूर ऑपरेटर ट्रैवल बुकिंग में कुछ सुधार के साथ आय की उम्मीद कर रहे हैं


हालांकि 5 प्रतिशत टीसीएस (बिना पैन के 10 प्रतिशत) से भारतीय ट्रैवल एजेंट एवं टूर ऑपरेटर्स को कमाई के बजाय पूरी बुकिंग विदेशी ट्रैवल बुकिंग एजेंट एवं टूर ऑपरेटर्स की ओर चली जाएगी। ऐसा इसलिए होने की आशंका है, क्योंकि यह भारतीय ट्रैवल एजेंटों के लिहाज से पूरी तरह गैर प्रतिस्पर्धी हैइससे उन्हें विदेशी प्रतिस्पर्धियों के मुकाबले बराबरी का मौका नहीं मिलेगा


भारत से मिलने टूरिज्म पैकेज भारत के बाहर से होने वाली बुकिंग की तुलना में 5 से 10 प्रतिशत महंगे पड़ेंगे। (पैन वालों के लिए यह 5 प्रतिशत महंगा होगा और बिना पैन वालों के लिए 10 प्रतिशत)।


5 प्रतिशत जीएसटी के कारण भारतीय ट्रैवल एजेंट एवं ऑपरेटर्स से होने वाली बुकिंग पहले से ही विदेश स्थित एजेंटों एवं ऑपरेटर्स की तुलना में महंगी है, क्योंकि विदेश यात्रा करने वाले भारतीयों को उसी बुकिंग पर कोई जीएसटी नहीं देना होता है।


 फेथ ने कहा कि भारतीय ट्रैवल एवं टूर ऑपरेटर अपने कारोबार को विस्तार भी नहीं दे सकते हैं और अंतरराष्ट्रीय यात्रियों को पैकेज नहीं बेच सकते हैं, क्योंकि वे भारतीय कर कानून से बंधे नहीं होते हैं और किसी तरह का रिफंड क्लेम नहीं कर सकते हैं।


भारतीय टूर ऑपरेटर एवं ट्रैवल एजेंट दक्षिण एशिया में रीजनल टूरिज्म प्रोडक्ट के मामले में भी कई कारोबारी अवसर गंवा देंगे। भारत में इनबाउंड टूरिज्म के मामले में यह क्षेत्र बहुत अहम भूमिका निभाता


फेथ के सदस्य संगठन चाहते हैं कि इस टैक्स को खत्म कर दिया जाए, क्योंकि इसके कारण मौजूदा संकट से जूझकर शून्य से शुरुआत करने की कोशिश में लगे पर्यटन उद्योग को आउटबाउंड एवं इनबाउंड ट्रैवल में बराबरी का मौका नहीं मिल पाएगा


कहने की जरूरत नहीं है कि इससे भारतीय ट्रैवल एजेंट एवं टूर ऑपरेटर्स के रोजगार एवं उनके कारोबार पर बहुत गहरा दुष्प्रभाव पड़ेगा।


पर्यटन उद्योग द्विपक्षीय तरीके से खुले बाजार में काम करता है। भारत से आउटबाउंड ट्रैवल बुकिंग कम होने और इसमें लगी कंपनियों का कामकाज बंद होने से भारत में आउटबाउंड ट्रैवल पर बुरा असर पड़ेगा। भारत लगातार ट्रैवल सोर्स मार्केट के रूप में कम आकर्षक होता जा रहा है, जिससे कई वैश्विक कंपनियों की भारत में पर्यटन को प्रोत्साहित करने में रुचि कम होगी। 2018-19 में ऐसी 1.65 करोड़ से ज्यादा यात्राएं हुई थीं। इसमें 1.05 करोड़ विदेश यात्री थे और विदेश यहां आने वाले दोस्त एवं रिश्तेदार 60 लाख से ज्यादा थे। इससे 28 अरब डॉलर से ज्यादा विदेशी मुद्रा आई थी


इससे एक और भी प्रभाव पड़ेगा। विभिन्न अंतरराष्टीय टूरिज्म बोर्ड की ओर से भारत में डेस्टिनेशन रिप्रजेंटेशन के लिए काम करने वाली कंपनियों में भी बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार मिला हुआ है। भारत से यात्रा करना महंगा होने पर उन कंपनियों को भी कामकाज बंद करना पड़ सकता है।


कारोबार में इस नुकसान के कारण भारत में चलने वाले कई ट्रैवल एजेंट के लिए काम करना फायदेमंद नहीं रह जाएगा, जिससे बड़ी संख्या में भारतीयों का रोजगार छिनेगा। एक अनुमान के मुताबिक, भारत में 60 हजार से ज्यादा ट्रैवल एजेंसियां हैं और उनमें करीब 20 लाख लोगों को रोजगार मिला हुआ है, जिन पर प्रभाव पड़ेगा और इससे उनके 80 लाख से ज्यादा परिवार के सदस्यों पर वित्तीय दबाव पड़ेगा। कहने की जरूरत नहीं है कि इससे जुड़ा काम देश से बाहर जाने से सरकार को आयकर एवं जीएसटी का भी नुकसान होगा।


फेथ के सदस्य संगठनों का कहना है कि टीसीएस को लेकर संवाद की कमी और अन्य मसलों के कारण इसके अनुपालन पर भी छोटी कंपनियों (इस सेक्टर में करीब 95 फीसद छोटी कंपनियां ही हैं) को बड़ा खर्च उठाना पड़ेगा और इससे उपभोक्ताओं और कंपनियों के बीच छोटी-छोटी राशि को लेकर विवाद की स्थितियां बनेंगी और इससे पर्यटन क्षेत्र के साथ-साथ कर प्रशासन पर भरोसा भी कम होगा। कोविड लॉकडाउन एवं कैंसलेशन के दौरान एयरलाइंस की तरफ से कैश रिफंड नहीं दिए जाने जैसे मामलों के कारण पहले से ही ट्रैवल एजेंट एवं टूर ऑपरेटर भरोसा खोने का सामना करना पड़ रहा है।


फेथ ने कहा कि संभव है कि प्रस्तावित टीसीएस से होने वाले कलेक्शन से सरकार के राजस्व पर शायद इतना बहुत कम प्रभाव पड़े। लेकिन भारत में 60 हजार से ज्यादा ट्रैवल कंपनियों एवं उनके करीब 20 Indian Tourism & Hospitality लाख कर्मचारियों को कारोबार में नुकसान, अनुपालन की ज्यादा लागत, कानूनी उलझनों और ऐसी कई समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है, जिससे कई सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम ट्रैवल एवं टूर कंपनियां खत्म होने के कगार पर आ जाएंगी, जो कि ग्लोबल फंडिंग से चल रही ई-कॉमर्स कंपनियों के कारण पहले से भी कई मुश्किलों का सामना कर रही हैं।


फेथ ने कहा कि भारतीय पर्यटन उद्योग पूरी तरह से कर अनुपालन बढ़ाने की देश की जरूरत के साथ है। ट्रैवल के मामले में कर अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए पैन कार्ड/आधार कार्ड/पासपोर्ट रिकॉर्ड आदि के जरिये पहले से ही कई प्रभावी कदम उठाए जा रहे हैं


फेथ ने अनुरोध किया है कि वित्त विधेयक 2020 में धारा 206सी के तहत आउटबाउंड ट्रैवल पर प्रस्तावित टीसीएस को लागू करने के प्रावधान को पूरी तरह से खत्म कर देना चाहिए क्योंकि यह भारतीय पर्यटन उद्योग के लिए बेहद प्रतिकूल एवं गैर प्रतिस्पर्धी कर साबित होगा