शारदा युनिवर्सिटी ने हरित एवं टिकाऊ मासिक चक्र के लिए एसएमडीएचएम के साथ गठबंधन कर अभियान चलाया

                                     


करीब 1000 से अधिक महिलाओं ने शारदा युनिवर्सिटी में एकजुट होकर संकल्प लिया - भारत में 45 स्थानों से 8,000 से अधिक महिलाएं शामिल हुई



दिल्ली / सोसाइटी ऑफ मेन्स्टुअल डिसऑडर्स एंड हाइजीन मैनेजमेंट (एचएमडीएचएम) ने शारदा युनिवर्सिटी के साथ गठबंधन में हरित मासिक धर्म अभियान की घोषणा की है। इस पहल का उददेश्य सुरक्षित और टिकाऊ मासिक धर्म व्यवस्थाओं को लेकर जागरूकता फैलाना है। करीब 1000 से अधिक महिलाएं टिकाऊ मासिक धर्म विकल्पों और उत्पादों का इस्तेमाल करने और जागरूकता बढ़ाने में मदद करने व आज बाजार में उपलब्ध विभिन्न टिकाऊ विकल्पों पर सूचना की सहायता से लोगों की सोच बदलने का संकल्प लेने के लिए शारदा युनिवर्सिटी में एकत्रित हुईंअंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर यह संकल्प लेने के लिए भारत में 45 स्थानों से 8,000 से अधिक महिलाएं एकजुट हुई। इस अवसर पर उपस्थित गणमान्य लोगों में डीसीपी (महिला सुरक्षा) सुश्री वृंदा शुक्ला (आईपीएस), एसीपी (महिला सुरक्षा) सुश्री तनु उपाध्याय, एसीपी (महिला सुरक्षा), गौतम बुद्ध नगर सुश्री सलोनी अग्रवाल, शारदा युनिवर्सिटी के कुलपति डॉक्टर जीआरसी रेड्डी, शारदा युनिवर्सिटी के प्रो वीसी प्रोफेसर पीएल करिहोलू, डीन, एसएमएसएंडआर डॉक्टर मनीषा जिंदल, डीन नर्सिंग साइंस एंड रिसर्च डॉक्टर पॉलिन शर्मिला, इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स की एमडी सुश्री नीरजा राय चौधरी, गोगर्ल फाउंडेशन की निदेशक सुश्री लता जैन आदि शामिल रहीं। डॉक्टर जीआरसी रेड्डी ने महिला सुरक्षा और लिंग समानता के बारे में बात की और उनकी पहल के लिए उन्हें प्रोत्साहित किया।


इस अवसर पर मुख्य अतिथि सुश्री वृंदा शुक्ला, आईपीएस,डीसीपी (महिला सुरक्षा) ने कहा, “पर्यावरण को बचाने और हरित मासिक धर्म को प्रोत्साहित करने के लिए एसएमडीएचएम द्वारा यह एक बड़ी पहल है। मासिक चक्र एक ऐसा चक्र है जिसका सामना हर महिला को करना पड़ता है और यह पहल उन्हें इस्तेमाल किए जाने वाले उत्पादों में और अधिक पर्यावरण अनुकूल बनने में मदद करेगी। मासिक चक्र से जुड़ी स्वच्छता के बारे में समझना बहुत महत्वपूर्ण है कि दो महीने पहले मैंने स्वयं हरित और पर्यावरण अनुकूल बांस से बने सैनिटरी पैड की ओर रूख किया।” 


उन्होंने कहा, “महिलाओं की सुरक्षा सबसे जरूरी है और हमें सार्वजनिक स्थानों और निजी स्थानों दोनों ही जगहों पर खुद के प्रति किसी भी तरह की गंदगी को प्रोत्साहित नहीं करना चाहिए। ऐसे कई हेल्पलाइन नंबर दिए गए हैं जहां आप अपनी शिकायतें दर्ज करा सकती और आपकी पहचान उजागर नहीं की जाएगी।”


इस अवसर पर शारदा युनिवर्सिटी में एसएमएसएंडआर की डीन डॉक्टर मनीषा जिंदल ने कहा, “महिलाओं का जीवन बच्चों के इर्दगिर्द घूमता है और वे उनके लिए सबसे बहुमूल्य हैं। इसलिए एसएमडीएचएम ने महिलाओं और बच्चों को मासिक धर्म से जुड़े स्वच्छता उत्पादों के उचित निस्तारण और पर्यावरण अनुकूल मासिक धर्म के बारे में शिक्षित कर उनके संपूर्ण स्वास्थ्य का लक्ष्य रखा है। इस मिशन के जरिये हम एक बार इस्तेमाल में आने वाले सैनिटरी पैड और टैंपन्स के नुकसान के बारे में जागरूकता फैलाना चाहते हैं और लड़कियों व महिलाओं से कप्स और कपड़े के पैड जैसे पर्यावरण अनुकूल विकल्पों की ओर रूख करने की गुजारिश करते हैं।”


इस पहल के बारे में विस्तार से बात करते हुए एसएमडीएचएम की अध्यक्ष और शारदा युनिवर्सिटी में सहायक प्रोफेसर डॉक्टर शेहला जमाल ने कहा, “डिस्पोजेबल पैड्स में 90 प्रतिशत प्लास्टिक होते हैं और प्रत्येक पैड चार प्लास्टिक बैग्स के बराबर है जो स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों के लिए ही नुकसानदायक है। भारत में मासिक धर्म से प्रतिवर्ष अनुमानित 1,13,000 टन कचरा निकलता है जहां एक महिला 150 किलोग्राम तक गैर बायोडिग्रेडेबल कचरा पैदा कर सकती है। इस तरह से उसके जीवनकाल में औसतन 11,000 से अधिक डिस्पोजेबल मासिक धर्म उत्पाद उपयोग में आते हैं। 35.5 करोड़ महिलाओं द्वारा पैदा किए गए इस प्लास्टिक के कचरे को पूरी तरह से समाप्त होने में करीब 800 से 1,000 साल लगते हैं। वहीं सफाई कर्मियों को हैपेटाइटिस सी जैसे संक्रमण का जोखिम रहता है और साथ ही यह ड्रेनेज सिस्टम को भी जाम कर देता है।”


पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय भी बताता है कि इस तरह के 28 प्रतिशत पैड आमतौर पर कचरे के साथ फेंक दिए जाते हैं, जबकि 33 प्रतिशत मिटटी में दबा दिए जाते हैं और 15 प्रतिशत खले में जला दिया जाता है। भारत में आधे से अधिक महिलाएं और लड़कियां डिस्पोजेबल नैपकिन का उपयोग करती हैं जिससे हर साल 44,9 अरब पैड फेंके जाते हैं। महिलाओं के डिस्पोजेबल स्वच्छता उत्पादों को बनाने में करीब 1.5 करोड टन ग्रीनहाउस गैसों का प्रतिवर्ष उत्सर्जन होता है जोकि 3.5 लाख बैरल तेल जलाने के बराबर है।


एसएमडीएचएम को उसके शीर्षक "अधिक महिलाएं विभिन्न स्थानों पर हरित मासिक धर्म का संकल्प ले रही हैं” के लिए इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड में पहचान मिली है।


शारदा युनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ मेडिकल साइंसेज, एलायड हेल्थ साइंसेज और नर्सिंग साइंसेज एंड रिसर्च से अधिकतर शिक्षिकाएं इस शपथ ग्रहण समारोह में मौजूद थीं