भारत में अक्षय ऊर्जा के विकास में तेजी लाने से जुड़ा नया शोध

                                                                            


                 भारत में अक्षय ऊर्जा के विकास में तेजी लाने से जुड़ा नया शोध


वैज्ञानिक पत्रिका सस्टेनेबिलिटी में प्रकाशित नए शोध लेख, भारत में अक्षय ऊर्जा और भूमि उपयोग सतत विकास को आसान बनाने का दृष्टिकोण” से पता चलता है कि भारत के लिए वर्ष 2022 तक 175 गीगावाट के अक्षय ऊर्जा लक्ष्य को पूरा करना संभव है। इसके लिए ऐसी भूमि पर बुनियादी ढ़ांचा बनाना होगा जो पहले से ही खराब श्रेणी में आ चुकी हो क्योंकि इस तरह की भूमि के इस्तेमाल से जुड़ा संभावित विरोध कम होगा। यह एक महत्वपूर्ण अवसर है क्योंकि इससे हमारे देश का अक्षय ऊर्जा उत्पादन बढ़ेगा, अक्षय ऊर्जा उत्पादन से जुड़ी परियोजनाएं तेजी से पूरी होंगी, परियोजना की लागत कम होगी और ऊर्जा तक पहुंच बढ़ेगी।


भारत ने 2022 तक अक्षय ऊर्जा उत्पादन को 175 गीगावाट तक बढ़ाने की महत्वाकांक्षी प्रतिबद्धता जताई है। हाल ही में  23 सितंबर, 2019 को न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र जलवायु कार्रवाई शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जीवाश्म ईंधन पर भारत की निर्भरता को कम करने और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए भारत के अक्षय ऊर्जा लक्ष्य को 450 गीगावाट तक बढ़ाने का संकल्प लिया है।


द नेचर कंजरवेंसी और सेंटर फॉर स्टडी ऑफ साइंस, टेक्नोलॉजी एंड पॉलिसी (सीएसटीईपी) द्वारा किए गए शोध से पता चलता है कि इस बाधा को कम करने का एक मौका है। प्राकृतिक आवासों उच्च कृषि उत्पादन वाले इलाकों में नए बुनियादी ढांचे को बनाने की बजाय मानवीय गतिविधियों के कारण पहले से ही खराब श्रेणी में आ चुकी भूमि पर ऊर्जा परियोजनाओं को लगाने से भूमि पर पड़ने वाला कुल प्रभाव कम होगा और उसके उपयोग से जुड़ा विरोध भी कम होगा। अच्छी खबर यह है कि भारत की पहले से ही मौजूद खराब श्रेणी की जमीन हमारे वर्ष 2022 के अक्षय ऊर्जा लक्ष्य से 10 गुना से ज्यादा ऊर्जा उत्पादन करने की क्षमता रखती है।


इस लक्ष्य को हासिल करने की सबसे बड़ी बाधाओं में से एक है अक्षय ऊर्जा उत्पादन से जुड़ा बुनियादी ढांचा बनाने के लिए भूमिका अधिग्रहण करना। अनुमान है कि 2022 के प्रारंभिक लक्ष्य को पूरा करने के लिए 55,000 से 1,25,000 स्केवर किमी भूमि की जरूरत होगी जो आकार में क्रमश हिमाचल प्रदेश या छत्तीसगढ़ के बराबर है। इसके अलावा यदि अक्षय ऊर्जा संसाधन क्षमता का अधिकतम हिस्सा हासिल करने की कोशिश की जाए यानी उस जगह ऊर्जा उत्पादन किया जाए जहां सूर्य सबसे अधिक चमकता है या वाह सबसे तेज चलती है तो लगभग 6,700 से 11,900 स्केवर किमी वन भूमि और 24,100 से 55,700 स्केवर किमी कृषि भूमि की जरूरत पड़ सकती है।


कम विरोध वाले इलाकों में अक्षय ऊर्जा उत्पादन करने से न केवल भारत को स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्य हासिल करने में मदद मिलेगी बल्कि खाद्य सुरक्षा को बनाए रखने और जैव विविधता की रक्षा करने में भी मदद मिलेगी। इस तरीके से विकास पर ध्यान केंद्रित करने से भूमि से जुड़े विवादों को कम करके परियोजना को समय सीमा में पूरा किया जा सकता है और कम जोखिम के कारण परियोजना की लागत भी कम रहेगी। इस तरह की भूमि पर अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं का विकास करने से विकास और संरक्षण दोनों ही कामों को एक साथ किया जा सकता है।