कर्नाटक में खनन निर्यात पर प्रतिबंध से राजकोष को हुआ 10,000 करोड़ रुपये का नुकसान लौह

अयस्क निर्यात पुनः प्रारंभ करने से खनन सेक्टर में 80,000 अतिरिक्त रोजगार पैदा होने का अनुमान


पिछले करीब एक दशक से भारतीय अर्थव्यवस्था विदेशी मुद्रा में होने वाली आय में नुकसान झेल रही है। इनमें कुछ ऐसे नुकसान भी शामिल हैं, जिनसे बचा जा सकता है। कर्नाटक सरकार ने जुलाई, 2010 में लौह अयस्क और लौह अयस्क के पेलेट्स के निर्यात पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया था। आगे चलकर सुप्रीम कोर्ट ने भी इस प्रतिबंध को बरकरार रखा था। इस कदम से कर्नाटक की अर्थव्यवस्था को मुश्किल का सामना करना पड़ा और भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी इसका दुष्प्रभाव पड़ा। एक अनुमान के मुताबिक, 10 साल में सरकार को रॉयल्टी, लाइसेंस फीस और सीमा शुल्क आदि के मद में सरकार को 10,000 करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान हुआ है। कर्नाटक के बेल्लारी, चित्रदुर्ग और तुमकुर जिलों में 2011 से 166 लौह अयस्क खदानों के बंद होने से परोक्ष तौर पर 8 लाख लोगों के रोजगार पर प्रभाव पड़ा है। अगर निर्यात प्रारंभ कर दिया जाए, तो राज्य में 80,000 अतिरिक्त प्रत्यक्ष रोजगार पैदा होंगेनिश्चित तौर पर अर्थव्यवस्था की मौजूदा स्थिति में इससे बड़ा लाभ मिलेगा


विदेशी मुद्रा आय की स्थिति ज्यादा चिंताजनक है, क्योंकि छह महीने पहले की तुलना में अयस्क की कीमतें बहुत टूट गई हैं। करीब एक तिहाई की कमी के साथ इस समय अयस्क की कीमत 150 डॉलर प्रति टन से घटकर 105 डॉलर प्रति टन रह गई है। इसी तरह कर्नाटक के खदानों और राज्य के राजस्व को अन्य मोर्चों पर भी मुश्किल का सामना करना पड़ रहा है। कर्नाटक में पेलेट प्लांट की क्षमता करीब 70 लाख टन सालाना की है और करीब 140 लाख टन लो-ग्रेड लौह अयस्क का स्टॉक पड़ा है, जिससे पेलेट्स बनाए जा सकते हैं। स्टील इंडस्ट्री में लो-ग्रेड लोहे का प्रयोग नहीं होता है, इसलिए इन्हें पेलेट्स में बदलकर निर्यात किया जा सकता है।


नीतिगत स्तर स्टील निर्माता बिना बिके ऐसा इकलौता लिए बाध्य किया गया है। वहीं जुटाने के लिए स्वतंत्र हैं। प्रतिबंध हटने खनन पर विभिन्न प्रतिबंध नीतिगत स्तर पर गलत प्रतिबंधों के कारण कर्नाटक में खदानों से लौह अयस्क की बिक्री तेजी से गिरी है। आज की तारीख में घरेलू स्टील निर्माता कर्नाटक से लौह अयस्क लेने के बजाय छत्तीसगढ़ और ओडिशा का रुख कर रहे हैं। इस कारण से यहां कर्नाटक में बिना बिके लौह अयस्क का बड़ा स्टॉक जमा हो गया है। इससे परोक्ष रूप से राज्य को और नुकसान हो रहा है। कर्नाटक देश का ऐसा इकलौता राज्य है जहां लौह अयस्क के निर्यात पर प्रतिबंध लगाकर खदान प्रमुखों को अपना पूरा लौह अयस्क कुछ घरेलू ग्राहकों को बेचने के लिए बाध्य किया गया है। वहीं ये ग्राहक अयस्क आयात करने से लेकर कैप्टिव माइन समेत अन्य माध्यमों से लौह अयस्क जुटाने के लिए स्वतंत्र हैं। प्रतिबंध हटने से लॉजिस्टिक्स और ट्रांसपोर्टेशन सेक्टर को भी फायदा होगा, जो पिछले 10 साल से मुश्किलों का सामना कर रहा है।


यह ध्यान देने की बात है कि कर्नाटक में खनन पर विभिन्न प्रतिबंध एवं निर्यात पर रोक का फैसला सबसे पहले केंद्र सरकार ने लगाया था। उस समय यह कदम अवैध खनन करने वालों और पर्यावरण संबंधी नियमों का उल्लंघन करने वालों पर नियंत्रण के लिए उठाया गया था। उत्पादन की सीमा तय करने, ई-ऑक्शन और अन्य कई प्रतिबंधों समेत विभिन्न नीतियों ने लाखों लोगों की आजीविका को मुश्किल में डाल दिया है। वहीं इन प्रतिबंधों से राज्य को कोई लाभ नहीं हुआ है। इनसे राज्य का लौह अयस्क उद्योग ठप पड़ गया है और नागरिकों की आजीविका संकट में पड़ गई है।