जलवायु परिवर्तन से निपटने और लंबा जीवन के लिए शहरों की डिजाइन एवं नियोजन में महत्वपूर्ण घटक है जल

 जल के महत्तम उपयोग के लिए विश्व के अग्रणी शहरों के डिजाइन दृष्टिकोण के संदर्भ में उनकी मैपिंग



नयी दिल्ली / आगामी 22 मार्च को विश्व जल दिवस के मौके पर वर्ल्ड युनिवर्सिटी ऑफ डिजाइन (डब्ल्यूयूडी) भारत की ऐसी पहली और एकमात्र युनिवर्सिटी है जो रचनात्मक क्षेत्र में शिक्षा के लिए समर्पित है, ने “सिटीज़ विथ दि बेस्ट वाटर डिजाइन” पर एक रिपोर्ट जारी की है। इनमें छांटे गए नगरों ने व्यापक स्तर पर जल संकट को दूर करने के लिए अनूठी प्रक्रियाओं में डिजाइन को एक रणनीतिक घटक के तौर पर अपनाया है। ये उन सबसे अधिक दिलचस्प नगरीय परियोजनाओं में से एक हैं जो जलापूर्ति का प्रबंधन, संरक्षण और रक्षा करती हैं। यह संकट के समय एक आरामदायक शहरी जीवन के तरीके को डिजाइन करने का एक सफल प्रयास है।


वर्ष 2025 तक दुनिया की दो तिहाई आबादी जल संकट का सामना कर सकती है और वर्ष 2030 तक जलापूर्ति 40 प्रतिशत तक घट सकती है जैसा कि भारत के विभिन्न शहरों में पहले ही यह स्थिति बन चुकी हैऐसा अनुमान है कि वर्ष 2050 तक भारत में 75 प्रतिशत आबादी शहरों में रह रही होगीइसलिए महानगरों में जल की समस्या हल करना महत्वपूर्ण मुद्दा है।


वर्ल्ड युनिवर्सिटी ऑफ एक वैश्विक युनिवर्सिटी है जो भारत में डिजाइन पाठ्यक्रमों के सबसे बड़े पोर्टफोलियो की पेशकश कर रही है जिसमें परिवहन डिजाइन, उत्पाद डिजाइन, गेम डिजाइन, फिल्म एवं वीडियो, डिजिटल ड्राइंग व इलस्ट्रेशन, बिल्ट एन्वायर्नमेंट एवं हैबिटेट स्टडीज, डिजाइन मैनेजमेंट, आर्ट एजुकेशन व क्यूरेटोरियल प्रैक्टिस पर आधारित 30 से अधिक अत्याधुनिक कार्यक्रम शामिल हैं। डब्ल्यूयूडी एरामस प्लस अनुदान प्राप्त करने वाली सबसे युवा युनिवर्सिटी है जिससे विद्यार्थियों के लिए यूरोपीय संघ के देशों में अध्ययन का मार्ग प्रशस्त होगा और उन्हें वहां बढ़िया अनुभव प्राप्त होगा। यह कला, डिजाइन एवं मीडिया की युनिवर्सिटीज एवं कॉलेजों के अंतरराष्ट्रीय संघ क्यूमलस का भी सदस्य है। इस संघ के 60 देशों में 160 से अधिक सदस्य हैं


वर्ल्ड युनिवर्सिटी ऑफ डिजाइन के स्कूल ऑफ आर्किटेक्चर की डीन शालीन शर्मा के मुताबिक, “जैसा कि हम 22 मार्च को विश्व जल दिवस मनाने जा रहे हैं, शहरी नियोजन में हमारे जल संसाधनों के प्रबंधन और उनकी प्रभावी डिजाइनिंग के महत्व को लेकर यह गंभीरतापूर्वक आत्मनिरीक्षण करने का समय है। स्मार्ट शहर आज के समय की जरूरत हैं। स्मार्ट शहरों की डिजाइनिंग के समय जल संवेदनशील शहरी नियोजन से हमें जलवायु परिवर्तन से निपटने के साथ ही जीवनकाल बढ़ाने और स्मार्ट शहरों का सौंदर्य बढ़ाने में मदद मिलेगी।”


वैश्विक शहर • केप टाउन, दक्षिण अफ्रीकाः केप टाउन को जल प्रबंधन के उसके प्रयासों के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली है। पिछले 15 वर्षों में इस नगर ने आबादी 30 प्रतिशत बढ़ने के बावजूद जल की खपत 30 प्रतिशत तक घटाने में सफलता हासिल की है। इस नगर के जल संरक्षण कार्यक्रम में दोहरा नजरिया अपनाया गया है. लोगों को कम से कम पानी उपयोग करने के लिए मनाना और जल का कुशल उपयोग करने के लिए नवीनतम प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करनाइस नगर ने पानी की बर्बादी घटाने, पुरानी पाइपों को बदलने, लीकेज दूर करने, व्यापक स्तर पर मरम्मत और पानी के मीटरों के प्रबंधन में सुधार लाकर पानी के दबाव को समायोजित किया है।


बेइरा, मोजांबिकः बेइरा, पुंगवे नदी पर एक बंदरगाह नगर है जहां नदी का पानी हिंद महासागर से मिलता है। कुछ मदद से इस नगर ने नगर के तेज बहाव की तत्कालिक समस्या से निपटने के लिए बेरिया 2035 के नाम से एक मास्टर प्लान बनाया है क्योंकि तेज बहाव की वजह से बाढ़ और मिट्टी के क्षरण की समस्या बार बार आती थी। इसकी योजना में ड्रेनेज कैनाल नेटवर्क का विस्तार और रिटेंशन बेसिन का निर्माण करने के अलावा तटीय संरक्षण उपाय शामिल हैं।


लीमा, पेरूः लीमा एक रेगिस्तानी नगर है जहां बहुत कम बारिश होती है। इसलिए यह हिमखंड के पिघलने से मिलने वाले जल पर आश्रित है। विशेषज्ञों के मुताबिक, हिमखंड पिघलने से मिलने वाला पानी अगले 40 वर्षों में समाप्त हो जाएगा। वर्ष 2007 में लीमा के सरकारी अधिकारियों ने पानी की भारी किल्लत से निपटने के लिए एक बुद्धिमानी भरा निर्णय कियाआवास, निर्माण और स्वच्छता मंत्रालय ने विश्व बैंक का जल एवं स्वच्छता कार्यक्रम चलाया जिसका लक्ष्य पानी बचाने को प्रोत्साहन देना, पानी का उचित शुल्क देने के लिए प्रेरित करना और लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक करना है।


भारतीय नगर


बेंगलूरू. बेंगलूरू भारत में तीसरा सबसे बड़ी आबादी वाला नगर है जहां करीब एक करोड़ की आबादी के लिए पानी का स्रोत लगभग 450 झील हैं। बेंगलूरू नगर इन झीलों को बहाल करने के लिए काफी प्रयास कर रहा है ताकि पानी जमीन के भीतर जा सके और आसपास के कुंए आदि भरे रहें। इस पहल के लिए इसने वर्ष 2012 में यूएन का अवार्ड जीता। कावेरी क्षेत्र में इसके पास चार बड़े जलाशय हैं और यह रेन वाटर हार्वेस्टिंग एवं जल की रिसाइक्लिंग पर जोर दे रहा हैसाथ ही यह कोडगू और हासन के वन क्षेत्रों का भी संरक्षण कर रहा है


भोपालः इस स्मार्ट शहर को ग्रीन एंड ब्लू मास्टर प्लान की अवधारणा पर विकसित किया जा रहा है। इसके मुताबिक, इस शहर के हरित एवं नीले कवर को संरक्षण दिया जाएगा। इसका मतलब है कि शहरी वनों और जल संसाधनों का विवेकपूर्ण प्रबंधन से है। उदाहरण के तौर पर विकेंद्रीकृत अपशिष्ट जल ट्रीटमेंट प्रणाली यह सुनिश्चित करता है कि सीवेज के पानी का स्रोत पर ही ट्रीटमेंट कर दिया जाए और इसका पुनः उपयोग किया जाय। लोगों के बीच रेनवाटर हार्वेस्टिंग की जरूरत और महत्व के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए रूफटॉप रेनवाटर हार्वेस्टिंग शुरू की गई है।


प्राचीन कस्बे


गुजरात का ढोलावीराः सिंधु घाटी सभ्यता अपनी बर्बादी के समय में भी इस बात का प्रमाण देती है कि अस्तित्व के लिए जल का कितना अधिक महत्व हैकई विद्वानों की मान्यता रही है कि ढोलावीरा में भरण पोषण और व्यापार के लिए पानी नगर डिजाइन का एक आंतरिक भाग था। ढोलावीरा का पश्चिम की ओर अरब सागर से निकटता थी और दो नदियां मनहर एवं मनसर उसके उत्तरी और दक्षिणी ओर बहती थीं जिससे इस नगर की प्राकृतिक सीमा बनती थी। जहां अरब सागर व्यापार के लिए मुख्य मार्ग था, ये दो नदियां ताजे जलापूर्ति का स्रोत थींयह महत्वपूर्ण बात थी कि यह नगर मनहर और मनसर नदी से मिलने वाले पानी और जमीन की सतर पर गिरने वाले वर्षों जल की प्रत्येक बूंद का ख्याल रखता था। इस नगर में पानी की एक बूंद भी बर्बाद नहीं जाती थीमध्य बनाए गए हैं। धुबेला में क्षेत्र में ये झीलें एक झील में चला जाता है


                         


मध्य प्रदेश का धुबेलाः विंध्य रेंज में बसा धुबेला भारत की सबसे समृद्ध संस्कृति वाले नगरों में से एक है। खजुराहो और ओरछा धुबेला के सबसे करीब के दो प्रमुख स्थान हैं। धुबेला अपने आप में अनूठा है क्योंकि यह अकेला ऐसा क्षेत्र है जहां हिंदु शासकों के स्मारक बनाए गए हैं। धुबेला में तीन प्रमुख झीलें (धुबेला झील, जगरसागर और साहिनिया झील) हैं। इस पूरे क्षेत्र में ये झीलें एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं और लबालब भरने के बाद इसका पानी दूसरी झील में चला जाता है। ये झीलें सिंचाई और पेयजल के मुख्य स्रोत के तौर पर काम करती हैं। ढोलावीरा के उलट धुबेला में कोई नदी नहीं बहती। इसलिए, धुबेला ने आपस में जुड़ी हुई इन तीनों झीलों का पूरा लाभ जल संचय क्षेत्र के तौर पर लिया है। पहाड़ी क्षेत्र होने की वजह से वर्षा जल बहकर इन झीलों में आता है जिससे धुबेला नगर की पानी की जरूरत सालभर पूरी होती हैये झीलें भूजल का स्तर बनाए रखती हैं।


                           


चीन में नदी यांग्त्जे का दक्षिण क्षेत्रः शांगहाए, सुझोऊ और हांगझोऊ के आसपास 13वीं शताब्दी से जुड़े दस प्राचीन नगर हैं जो हमें नदियों और झीलों के साथ सौहार्दपूर्ण तरीके से जीना सिखाते हैं। जल वाले इन दस नगरों को “वेनिस ऑफ चाइना” के तौर पर जाना जाता है क्योंकि ये जलाशयों से घिरे हैं। इन नगरों का जल के बहाव के अनुरूप अपना आकार है। इनमें से झितांग सबसे प्रमुख जल कस्बा है जो सितारा जैसे आकार में है जहां कई नदियां एक स्थान पर मिलती हैं। वहीं नानक्सन कॉस आकार वाला जल कस्बा है जहां दो प्रमुख नदिया मिलती हैं। इसलिए, जलाशयों के आसपास वाले नगरों की डिजाइनिंग से उस जलाशय के पानी को बिना खराब किए और उसका संरक्षण करते हुए पूर्ण उपयोग सुनिश्चित होता हैजल संकट की स्थिति से निपटने के लिए यह सबसे बेहतर उपायों में से एक है।