कोविड-19 को डब्ल्यूएचओ की तरफ से महामारी घोषित किए जाने से गोवावासियों के लिए और संकट पैदा हो गया है, क्योंकि आने वाले दिनों में राज्य के पर्यटन सेक्टर पर भी व्यापक दुष्प्रभाव दिखेगा
नई दिल्ली : गोवा में खनन उद्योग से आजीविका कमाने वाले लाखों कामगारों के हितों का प्रतिनिधित्व करने वाले संगठन गोवा माइनिंग पीपुल्स फ्रंट (जीएमपीएफ) ने गोवा में खनन उद्योग बंद करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद खनन गतिविधियां रुकने के दुर्भाग्यपूर्ण दो साल पूरे होने के मौके पर आज लोगों की आजीविका की रक्षा के लिए राज्य में तत्काल खनन गतिविधियों को पुनः प्रारंभ कराने की अपील की। 16 मार्च, 2018 से गोवा में सभी खनन गतिविधियां पूरी तरह रुक गई थी, जिससे 3 लाख से ज्यादा गोवावासियों की आजीविका पर दुष्प्रभाव पड़ा। इसके परिणामस्वरूप राज्य में रोजगार छिनने और बेरोजगारी की गंभीर स्थिति पैदा हो गई
खनन गतिविधियां रुकने के दो साल में गोवा बेरोजगारी और राज्य के राजस्व सृजन के सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक 34.5 प्रतिशत की बेरोजगारी दर के साथ गोवा देश में बेरोजगारी के मामले में सबसे बदहाल स्थिति में है।
हाल में दुनियाभर में कोविड-19 (कोरोना वायरस) के तेजी से बढ़ते मामलों ने अर्थव्यवस्था को और मुश्किल में डाल दिया है, क्योंकि इससे गोवा में पर्यटकों की संख्या कम हुई है, जिसने वित्तीय संकट को और गहरा किया है। इस कारण से पर्यटन के जरिये रोजमर्रा की सामान्य जरूरतें पूरी करने वाले गोवावासियों की बदहाली और बढ़ गई है। खनन और पर्यटन दोनों उद्योगों का भविष्य संकट में है, ऐसे में खनन गतिविधियों को तत्काल पूरी तरह से बहाल किया जाना चाहिए, ताकि गोवा और गोवा के लोगों की आर्थिक बदहाली में कुछ राहत मिल सके। गोवा में खनन पर निर्भर लोग विशेषतौर पर आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं और खनन को पुनः प्रारंभ किया जाना उनके लिए जरूरी है।
पिछले 2 साल में जीएमपीएफ के प्रतिनिधियों ने गोवा में खनन गतिविधियां जल्द शुरू कराने की दिशा में हस्तक्षेप करने और कदम उठाने के लिए राज्य एवं केंद्र सरकार के अधिकारियों से कई बार मुलाकात की है और कई अपील व मेमोरेंडम सौंपे हैं। जीएमपीएफ ने माननीय राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, गृह मंत्री, खनन मंत्री, कानून मंत्री, गोवा के मुख्यमंत्री और विभिन्न दलों के सांसदों एवं केंद्र व राज्य के नौकरशाहों समेत विभिन्न संबंधित पक्षों से मुलाकात की है। जीएमपीएफ के प्रेसिडेंट श्री पुती गांवकर ने कहा, "दो साल से खनन गतिविधियों पर लगी रोक ने राज्य के सामाजिक
जीएमपीएफ के प्रेसिडेंट पुती गांवकर ने कहा, "दो साल से खनन गतिविधियों पर लगी रोक ने राज्य के सामाजिक ढांचे को बहुत नुकसान पहुंचाया है। गोवा में बड़े पैमाने पर रोजगार देने वाले दो सेक्टर हैं : पहला खनन, जो दो साल से रुका हुआ है और इस कारण से 3 लाख लोगों की आजीविका छिन गई है तथा दूसरा सेक्टर है पर्यटन। दुनियाभर में कोविड-19 के प्रसार के कारण गोवा में पर्यटन बहुत कम हो गया है और पर्यटकों की संख्या में अभी और गिरावट के आसार हैं। इस बात की अनदेखी नहीं की जा सकती है, क्योंकि इससे लोगों का भविष्य दांव पर लगा है। मौजूदा परिदृश्य में खनन गतिविधियों को पुनः प्रारंभ किया जाना एकमात्र ऐसा समाधान है, जो राज्य के साथ-साथ यहां के लोगों की आर्थिक स्थिति को सुधारने में सक्षम है। गोवा में खनन पुनः प्रारंभ कराने की दिशा में कोई ठोस समाधान नहीं होने से खनन पर निर्भर लोग गंभीर वित्तीय संकट से जूझ रहे हैं। हाल में शुरू हुईं परिवहन गतिविधियों से बहुत कम समय तक की राहत ही मिलेगी, इसलिए जरूरी है कि राज्य में 3 लाख लोगों की आजीविका की रक्षा के लिए खनन गतिविधियों को पूरी तरह पुनः प्रारंभ कर दिया जाए। मुख्यमंत्री ने जीएमपीएफ को सुनिश्चित कराया है कि उन्होंने इस मुददे को संज्ञान में लिया है और समाधान निकलने वाला है। हालांकि केवल भरोसा दिलाने या लीज दिए जाने से समाधान नहीं हो सकता, इसके लिए धरातल पर पुनः खनन गतिविधियां प्रारंभ होनी चाहिए। गोवा के मुख्यमंत्री ने आजीविका गंवाने वालों को 5000 रुपये मासिक के वित्तीय राहत पैकेज का भी भरोसा दिलाया है। यह पैकेज पिछले साल से ही लोगों को मिलना था, लेकिन अब भी यह नहीं हो पाया है। सरकार को तत्काल यह राहत पैकेज बांटना शुरू करना चाहिए, जिससे कर्मचारियों को कुछ वित्तीय राहत मिल सके।”
उन्होंने आगे कहा, "राज्य सरकार ने सुनिश्चित किया है कि न्यायिक या विधायी किसी भी माध्यम से खनन गतिविधियां पुनः प्रारंभ कराई जाएंगी और 3 लाख गोवावासियों का जीवन पुनः सामान्य हो सकेगा। हम माननीय सुप्रीम कोर्ट से भी निवेदन करते हैं कि गोवा में खनन पर निर्भर लोगों की समस्याओं को समझे और 21 अप्रैल, 2020 को होने जा रही सुनवाई में कम से कम कुछ अंतरिम राहत अवश्य दे।"
अचानक खनन उद्योग रुक जाने से पिछले 2 साल में राज्य की अर्थव्यवस्था को 7,000 करोड़ रुपये से ज्यादा के राजस्व का नुकसान हुआ हैइससे राज्य में प्रतिव्यक्ति आय भी बहुत कम हो गई है।